जिस देश में सचिन तेंदुलकर, सानिया मिर्ज़ा और शाहरुख़ ख़ान जैसे सेलिब्रेटी की ज़िंदगी पर बारीकी से नज़र रखी जाती हो, वहां अमिताभ बच्चन का नाम चार विदेशी कंपनियों के प्रबंध निदेशक के रूप में सामने आने पर लोगों की इस बारे में दिलचस्पी होना स्वाभाविक है.
हालांकि इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में पनामा फ़ाइल्स से संबंधित इस रिपोर्ट के बाद अमिताभ बच्चन ने इन कंपनियों से उनका नाता न होने की बात बताते हुए कहा था कि हो सकता है कि उनके नाम का ग़लत इस्तेमाल हुआ हो.
1993 में बच्चन को अप्रवासी भारतीय का दर्जा प्राप्त था और ये चार कंपनियां कथित तौर पर ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स और बहामा में दर्ज थीं.
बहरहाल बच्चन परिवार की गांधी-नेहरू परिवार से दोस्ती आनंद भवन, इलाहाबाद के दिनों से है. उस वक़्त इंदिरा गांधी अविवाहित थीं.
सरोजिनी नायडू ने अमिताभ के माता-पिता, कवि हरिवंश राय बच्चन और उनकी सिख पत्नी तेजी बच्चन का परिचय जवाहर लाल नेहरू और उनकी बेटी इंदिरा से 'द पोएट एंड द पोयम' कहकर कराया था.
जब अमिताभ चार साल के हुए तो उनकी मुलाक़ात दो साल के राजीव गांधी से हुई. मौक़ा था, इलाहाबाद के बैंक रोड स्थित बच्चन के घर में बच्चों की फैंसी ड्रेस पार्टी का और उसमें राजीव गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के सिपाही बने थे.
एक साक्षात्कार में अमिताभ ने कहा था, "मां ने कहा, उसने अपने पैंट में गड़बड़ कर दिया. हम सब उस समय बहुत छोटे थे, अपने छोटे-छोटे खेलों में इतने मसरूफ़ कि हमें इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा कि पंडित नेहरू के नाती हमारे बीच थे."
जब नेहरू नई दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन में देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर रहने आए तो राजीव और उनके भाई संजय अक्सर बच्चन भाई अमिताभ और अजिताभ के साथ खेलते नज़र आते.
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और उनके साथ खेलते नज़र आते इंदिरा गांधी के सहयोगी मोहम्मद यूनुस के बेटे आदिल शहरयार और कबीर बेदी.
जहां राजीव और संजय दून स्कूल में पढ़ते थे, अमिताभ और अजिताभ नैनिताल के शेरवुड स्कूल में पढ़ते थे. छुट्टियों के दौरान सभी बच्चे नई दिल्ली आते और रोज़ राष्ट्रपति भवन स्थित स्विमिंग पुल में एक साथ तैरते.
राजीव और संजय ने अमिताभ को बड़े पैमाने पर सिनेमा से अवगत कराया ख़ासकर जब यूरोपीय फ़िल्मों की ख़ास स्क्रीनिंग नेहरू-गांधी परिवार के लिए राष्ट्रपति भवन में कराई जाती थी.
अमिताभ बताते हैं कि एंटी-वॉर मैसेज से भरपूर फ़िल्में जैसे 'क्रेन्स आर फ्लाइंग' और दूसरी चेक, पोलिश और रूसी फिल्मों की स्क्रीनिंग में वो राजीव और संजय के साथ होते थे.
इंदिरा के नज़दीकी सहयोगी यशपाल कपूर अमिताभ को बहुत पसंद करते थे.
कई राज्यों में विपक्षी सरकारों को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कपूर के बार में कहा जाता है कि उन्होंने अमिताभ को दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेन्स कॉलेज में दाख़िला दिलाने की काफ़ी कोशिश की थी.
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लेकिन किसी कारणवश अमिताभ ने किरोड़ीमल कॉलेज को चुना, हालांकि उनके छोटे भाई अजिताभ ने सेंट स्टीफ़ेन्स से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की.
हिंदी फ़िल्मों में अमिताभ ने पहली बार केए अब्बास की फ़िल्म 'सात हिंदुस्तानी' में अभिनय किया था, यह फ़िल्म गोवा की आज़ादी पर आधारित थी.
माना जाता था कि अब्बास तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के क़रीबी थे और उन्होंने ही संघर्ष कर रहे अमिताभ की सिफ़ारिश उनसे की थी.
हालांकि अब्बास ने हमेशा कड़े शब्दों में इस बात से इनकार किया कि उन्होंने इंदिरा के कहने पर अमिताभ को अपनी फ़िल्म में रोल दिया था.
हरिवंश राय बच्चन बाद में राज्य सभा के सदस्य बने जबकि तेजी बच्चन को 1973 में फ़िल्म फाइनेंस कॉरपोरेशन का अध्यक्ष बनाया गया.
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यही वो समय था जब अमिताभ ने जया से शादी की. शादी में बहुत कम मेहमान बुलाए गए थे लेकिन गांधी परिवार का प्रतिनिधित्व संजय गांधी कर रहे थे.
जब अमिताभ एक अभिनेता के तौर पर उभरे तो राजीव उनसे मिलने फ़िल्मों के सेट्स पर पहुंच जाते थे, अत्यंत विनीत और बहुत ही धैर्य के साथ उनकी शूटिंग ख़त्म होने का इंतज़ार करते.
अमिताभ याद करते हैं, "उनका स्वभाव था कि वो कभी भी अपने परिवार के नाम का दुरुपयोग नहीं करते थे. ज़्यादातर समय वो अपने उपनाम का ख़ुलासा नहीं करते थे, इस डर से कि उनके और साधारण लोगों के बीच फ़ासले बढ़ जाएंगे."
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उसके बाद आया आपातकाल. अमिताभ को अक्सर संजय के साथ देखा जाता था और उन्हें संजय का समर्थन करने के लिए मीडिया की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था.
11 अप्रैल 1976 को दिल्ली में "गीतों भरी शाम" नाम से कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इसे संजय और रुख़साना सुल्तान (अभिनेत्री अमृता सिंह की मां) के विवादित परिवार नियंत्रण कार्यक्रम के लिए पैसा जुटाने के लिए आयोजित किया गया था.
उस दिन जया और अमिताभ दोनों संजय के साथ उस कार्यक्रम में मौजूद थे.
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इंदिरा के आपातकाल के समय जब तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल कठोर नीति अपनाकर हिंदी फ़िल्मों में हिंसा बंद करवा रहे थे, रमेश सिप्पी की फ़िल्म 'शोले' पर्दे पर आई.
लेखक जोड़ी सलीम-जावेद और बाक़ी लोग परेशान थे कि क्या फ़िल्म सेंसर बोर्ड से पास होगी.
ऐसे वक़्त में अमिताभ के संबंध काम आए और अमूमन अपनी बात पर अड़े रहने वाले शुक्ल ने फ़िल्म के क्लाइमेक्स समेत कुछ छोटे-मटे बदलाव कर उसे पास कर दिया.
पूरे 19 महीने लंबे आपातकाल के दौरान अमिताभ ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन की ओर से किशोर कुमार पर लगाए गए प्रतिबंध और सरकार की खुलेआम आलोचना करने वाले प्राण और देव आनंद जैसे कलाकारों के बहिष्कार पर चुप्पी साधे रहे.
फ़िल्म पत्रकारों को कड़ी सेंसरशिप का सामना करना पड़ा और युवा अमिताभ और ज़ीनत अमान से जुड़ी कथित तौर पर सनसनीखेज़ बातें दबा दी गईं.
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संजय की मौत के बाद राजीव की एंट्री हुई और तब दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित 1982 एशियाई खेलों के उद्घाटन समारोह में अमिताभ ने अपनी आवाज़ प्रदान की.
शो के मुख्य आयोजक राजीव गांधी पहली कतार में बैठे थे और अमिताभ शो एंकर कर रहे थे.
बोफ़ोर्स घोटाले के बाद इलाहाबाद से सांसद अमिताभ का राजनीति से मोह भंग हो गया और उन्होंने राजनीति छोड़ दी.
उन पर मिडलमैन होने के आरोप लगे. अपने सम्मान के लिए अमिताभ लड़े और एक लंबी क़ानूनी लड़ाई जीती. लेकिन वो राजनीति से अपना संबंध पूरी तरह नहीं तोड़ सके.
राजीव गांधी से अमिताभ के अलग होने को राजीव के राजनीतिक पतन का सबसे बड़ा कारण माना जाता है. 1987 के इलाहाबाद लोकसभा उप-चुनाव ने बंटे हुए विपक्ष को ये समझा दिया कि 543 सीटों वाली लोकसभा में 413 सीटों वाली कांग्रेस को साथ मिलकर हराया जा सकता है.
29 अगस्त 1998 में 'हिंदू' में वरिष्ठ पत्रकार हरीश खरे ने लिखा था, "किसी को मिस्टर बच्चन के करोड़पति होने पर शिकायत नहीं होनी चाहिए. किसी भी दूसरे व्यवसायी की तरह उन्हें भी पैसे कमाने का अधिकार है. लेकिन दिक्कत है कि वो केवल एक दूसरे व्यवसायी नहीं हैं. उन्हें हमारे हाल के समय के शुभंकर के तौर पर समझना होगा."
उन्होंने लिखा, "1980 के दशक में वो प्रतीक बने उस सपने का, जो ग़लत हो गया. 1990 के दशक में वो अभिजात वर्ग के स्तर पर निष्ठा की उड़ान के प्रतीक बने, जब उन्होंने एक ग़ैर निवासी भारतीय बनने का विकल्प चुना."
"और अब दशक के दूसरे भाग में वो इस बात की अकड़ दिखाते हैं कि वो वन-मैन कॉरपोरेशन हैं, जो एक अर्ध-वैश्वीकरण, फ़्री मार्केट अर्थव्यवस्था में एक नई भूमिका में ख़ुद को ढाल चुके हैं."
खरे ने आगे लिखा, "एक मध्यम वर्गीय युवक का कॉरपोरेट जगत के शिखर तक पहुंचने का यह अभूतपूर्व सफ़र है."
पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहाकार के तौर पर काम कर चुके खरे बच्चन के बारे में आगे लिखते हैं, "एक व्यक्ति जिन्होंने भारत में बहुत कमाया, एक व्यक्ति जो 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' में भारतीय भावना की एकता के शुभंकर बने, ऐसे व्यक्ति का भारत में दम घुटना उनके अंदाज़ में ऐंठन पैदा करता है."
खरे ने इसके बाद में लिखा, "मिस्टर बच्चन एनआरआई बन गए. शायद इसकी वजह उस दोस्त से अनजाने में मिला विश्वासघात हो, जिसने क़रीब पांच सालों तक भारत पर शासन किया था. बच्चन की एनआरआई बनने की इच्छा, उनकी विभाजित वफ़ादारी, उच्च वर्ग के दोहरे चरित्र को दर्शाता है."
खरे का मानना है, "पूरे समय ये दिखाकर कि वो समाज सेवा कर रहे हैं, दरअसल उन्होंने सार्वजनिक पैसे से ख़ुद की मदद की. फिर उच्च वर्ग के बच्चन ने बड़े आराम से अपनी ही मातृभूमि को उस वक़्त छोड़ दिया जब सब कुछ बदसूरत और भयावह होने लगा. ये ख़ूबसूरत लोग अयोध्या, सूरत, अहमदाबाद और मुंबई की बदबू को बर्दाश्त नहीं कर सके."
खरे ने अपने लेख को कुछ इस तरह से ख़त्म किया कि लोग सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. उन्होंने कहा, "दूसरे किसी भी नागरिक की तरह मिस्टर बच्चन पहले भी और अब भी किसी भी व्यवसाय में भाग लेने को स्वतंत्र हैं. लेकिन जो बात सार्वजनिक जांच का विषय है, वो ये कि उनका अभी भी राजनीतिक गलियारों से घनिष्ठ रिश्ते की दरकार. दरअसल इस देश को उद्यमशीलता के इस ब्रांड का खंडन करना चाहिए जो पूरी तरह राजनीतिक संबंधों और राजनीतिक इनायत पर टिका है."
Embassy of Nepal might be able to help extend TPS for Nepal
I hope all the fake Nepali refugee get deported
Those who are in TPS, what’s your backup plan?
Homeland Security revokes temporary status for 532,000 Cubans, Haitians, Nicaraguans and Venezuelans
Venezuela TPS lawuit
ChatSansar.com Naya Nepal Chat
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TPS for Venezuela is terminated, only 60 days extension for transition period
TPS to F1 Status.
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